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सिटी पैलेस - उदयपुर

सिटी पैलेस - उदयपुर सबसे विशाल महलो में से एक “सिटी पैलेस, उदयपुर सिटी पैलेस का निर्माण महाराणा उदय सिंह द्वितीय द्वारा उदयपुर शहर का निर्माण किये जाने के साथ ही किया गया था। इसके निर्माणकार्य में उनके उत्तराधिकारी महाराणा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तक़रीबन 400 साल पहले इस विशाल महल का निर्माण किया गया था। इसी महल मं महाराजा रहते थे और शासन करते थे, इसीलिए इस पैलेस को राजस्थान के इतिहास में सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। शुरू-शुरू में नागदा में मेवाड़ साम्राज्य का विस्तार किया जा रहा था, जिसकी स्थापना 568 AD में मेवाड़ के पहले महाराणा गुहिल ने की थी। आंठवी शताब्दी में, राज्य की राजधानी को चित्तोड़ स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ सिसोदिया राजपूतो ने तक़रीबन 80 सालो तक शासन किया। 1537 में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने पुनः मेवाड़ साम्राज्य की स्थापना की, लेकिन समय के साथ-साथ मुग़ल साम्राज्य से युद्ध के दौरान किले पर से वे अपना नियंत्रण खोते चले जा रहे थे। परिणामस्वरूप उदय सिंह द्वितीय ने पिछोला सरोवर के किनारे पर ही अपने नए साम्राज्य का निर्माण करने की ठान ली थी। यह जगह चारो तरह से जंगलो से घिरी हुई थी, जिसके चारो तरफ सरोवर ही सरोवर है। उन्होंने इसी जगह को अपनी नयी राजधानी बनाने की ठान ली थी। प्राचीन शाही संरचना का निर्माण शाही आँगन उर्फ़ ‘राय आँगन’ के रूप में किया गया और वही से सिटी पैलेस जैसे विशाल महल के संरचना की शुरुवात की गयी सन्यासी ने जिस जगह पर महल बनाने की सलाह दी थी, वही महाराणा ने अपनी नयी राजधानी का निर्माण करवाया था। 1572 में उदय सिंह की मृत्यु के बाद उनके सुपुत्र महाराणा प्रताप ने उदयपुर की बागडोर संभाली। जबकि 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में बादशाह अकबर ने उन्हें पराजित कर दिया और उदयपुर मुघलो के कब्जे में चला गया। अकबर की मृत्यु के बाद मेवाड़ पुनः महाराणा प्रताप के बेटे और उत्तराधिकारी अमर सिंह प्रथम को सौपा गया। अमर सिंह को मेवाड़ का सिंहासन जहाँगीर ने दिया था। जबकि, मुग़ल साम्राज्य की सेना ने इसके बार भी कयी बार मेवाड़ साम्राज्य के खिलाफ अभियान छेड़ने की कोशिश की थी, जिसका समापन दोनों शासको के बीच एक शांति समझौता कर ही हुआ। लेकिन 1761 में मराठाओ के बढ़ते आक्रमण के चलते उदयपुर और मेवाड़ राज्य गिरने की कगार पर खड़े थे। 1818 से महाराणा भीम सिंह ने ब्रिटिशो के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किये, जिसमे साफ़-साफ़ लिखा गया था की ब्रिटिश अधिकारी दुसरे शासको के खिलाफ उनकी सहायता करेंगे। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद 1949 में मेवाड़ साम्राज्य के साथ-साथ दुसरे रियासती राज्य लोकतांत्रिक भारत में भी विलय हो गए। इसके बाद मेवाड़ के राजा को भी अपने शाही अधिकार और अपना शाही पद गवाना पड़ा था। इसके बाद उत्तराधिकारी महाराणाओ ने महल पर अपना अधिकार बनाये रखा था और महल के परिसर को उन्होंने हेरिटेज होटल (विरासतीय होटल) के रूप में विकसित किया। सिटी पैलेस महल परिसर के भीतर की संरचना: दरबार हॉल: दरबार हॉल का निर्माण 1909 में फतेहप्रकाश पैलेस के भीतर अधिकारिक कार्यक्रमों के लिए किया गया था। जहाँ शाही और राजसी मीटिंग का आयोजन किया जाता था। इस हॉल की गैलरी का उपयोग राजसी महिलाओ द्वारा दरबार में चल रही गतिविधियों को देखने के लिए किया जाता था। दरबार हॉल को बड़े झूमर के साथ सुशोभित किया गया है। साथ ही महाराजाओ के हथियार और उनके विशाल चित्र भी हॉल में हमें दिखाई देते है। इस हॉल के आधारस्तंभ का निर्माण 1909 में महाराणा फ़तेह सिंह के शासनकाल में भारत के वाइसराय लार्ड मिन्टो ने करवाया था और उस समय इसे मिन्टो हॉल के नाम से भी जाना जाता था। द्वार: द्वार को बोलचाल की भाषा में पोल भी कहा जाता है, उदयपुर शहर के पूर्व में महल के मुख्य द्वार बने हुए है। इन द्वारो से ही हम महल में प्रवेश कर सकते है। शहर का मुख्य प्रवेश द्वार ‘बड़ा पोल’ है, जो हमें महल परिसर के पहले आँगन में ले जाता है। बड़ा पोल के बाद 1725 में बनाया गया त्रिपोलिया पोल आता है, जो शहर के उत्तर में बना हुआ है। दिलखुश महल: दिलखुश महल का निर्माण 1620 में किया गया था। छोटी चित्रशाली: छोटी चित्रशाली या “छोटे पिक्चरो के रहने के स्थान” का निर्माण 19 वी शताब्दी के शुरू में ही किया गया था, यहाँ हमें मोर के चित्र दिखाई देते है। चीनी चित्रशाला: चीनी चित्रशाला चीनी और डच सजावटी टाइल्स को दर्शाती है। कृष्णा विलास: महल के परिसर में कृष्णा विलास नाम का एक अन्य कक्ष भी है। यहाँ पर लघु चित्रों का भण्डारण किया गया है, जिनमे शाही जुलुस, उत्सवो और महाराणा के खेलो को चित्रित किया गया है। लक्ष्मी विलास चौक: लक्ष्मी विलास चौक एक आर्ट गैलरी है, जहाँ मेवाड़ की चित्रकलाओ का भण्डारण किया गया है। मानक महल: मानक महल मानक चौक से जुड़ा हुआ है। इसका निर्माण मेवाड़ शासको के औपचारिक दर्शको के लिए किया गया था। इसे पूरी तरह से आइनों से सजाया गया है। यहाँ पर स्थापित चमचमाते शिशो में हमें सूर्य का चेहरा प्रतीत होता है, साथ ही सिटी महल में बहुत सी जगहों पर सिसोदिया साम्राज्य का धार्मिक प्रतीक चिन्ह भी हमें दिखाई देता है। रंग भवन: रंग भवन एक प्रकार का महल है, जिसका उपयोग शाही खजाना रखने के लिए किया जाता है। रंग भवन में भगवान कृष्णा, मीराबाई और शिवजी का मंदिर भी है। फतेहप्रकाश पैलेस: वर्तमान में फतेहप्रकाश पैलेस एक विरासती शाही होटल है, जिसकी क्रिस्टल गैलरी में क्रिस्टल कुर्सी, ड्रेसिंग टेबल, सोफे, कुर्सियां और पलंग, टेबल फाउंटेन है, जिनका कभी उपयोग नही किया जाता। साथ ही यहाँ पर गहने जड़ा हुआ कारपेट भी है। इन दुर्लभ वस्तुओ को महाराणा सज्जन सिंह ने 1877 में ऍफ़ & सी ओस्लेर & कंपनी, लन्दन से लाया था लेकिन वस्तुओ के भारत आने से पहले ही उनकी मृत्यु हो चुकी थी। कहा जाता है की वस्तुओ के भारत वापिस आने के बाद भी 110 साल तक इनकी पैकिंग को किसी ने नही खोला था। मोर चौक: मोर चौक महल के भीतर बना हुआ है। इसमें मोर के आकार वाले कक्ष का भी निर्माण किया गया है। कक्ष में कुल तीन मोरो को बनाया गया है (जो शीत, ग्रीष्म और मानसून तीन ऋतुओ का प्रतिनिधित्व करते है)। कक्ष में हमें प्राचीन समय के झरोके भी देखने मिलते है, जिनका निर्माण सिटी पैलेस की स्थापना के 200 साल बाद महाराणा सज्जन सिंह के शासनकाल में किया गया था। बड़ी महल: बड़ी महल को गार्डन पैलेस के नाम से भी जाना जाता है, जो पैलेस के बीच में बना हुआ है। यह महल 27 मीटर ऊँचा है, जिसका निर्माण प्राकृतिक पत्थरो से किया गया है। दुसरे महलो की ऊंचाई के साथ यदि इसकी तुलना की जाए तो जहाँ पर दुसरे महलो की चौथी मंजिल बनी हुई होती है, उतनी ऊंचाई पर बड़ी महल की सबसे निचली मंजिल बनी हुई है। अमर विलास: अमर विलास परिसर की सबसे उपरी अदालत है, जो एक ऊँचा बगीचा है। यहाँ से हम बड़ी महल में प्रवेश कर सकते है। आनंद मंडप के रूप में इसका निर्माण मुग़ल कला के अनुरूप किया गया है। अमर विलास में हमें संगमरमर से की गयी कारीगरी भी दिखाई देती है। ‘अमर विलास’ सिटी पैलेस का उच्चतम भाग है और यहाँ पर ऊँचे बगीचे भी बने हुए है, जिनपर फाउंटेन और टावर्स लगे हुए है। शीश महल: शीश महल का निर्माण 1716 में महाराणा प्रताप ने उनकी पत्नी महारानी अजब्दे के लिए करवाया था। भीम विलास: भीम विलास में लघु चित्रों का भण्डारण किया गया है, जिनमे राधा-कृष्णा की कथाओ को चित्रित किया गया है। म्यूजियम: 1974 में सिटी पैलेस के कुछ भाग और ज़नाना महल (महिलाओ का कक्ष) को म्यूजियम में परिवर्तित कर दिया गया। आम जनता भी इस म्यूजियम में प्रवेश कर सकती है। लोकप्रिय संस्कृति: 1985 में जेम्स बांड की फिल्म ऑक्टोपसी में महल को एक होटल के रूप में प्रदर्शित किया गया, जहाँ गेम्स बांड रुके भी थे। 1991 की डाक्यूमेंट्री फिल्म में भी सिटी पैलेस को दिखाया गया था। साथ ही महल में महाराणा अरविन्द सिंह के लिए नाटक का प्रदर्शन भी किया गया था। साथ ही इस पैलेस का उपयोग ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ फिल्म की शूटिंग के लिए भी किया गया। 2013 में आयी इस फिल्म को संजय लीला भंसाली ने डायरेक्ट किया था। उदयपुर के सिटी पैलेस का निर्माण चमकदार शैली में किया गया है और राजस्थान राज्य के सबसे विशाल महलो में से यह एक है। इसका निर्माण ऊँची पहाड़ी पर किया गया है और साथ ही इसके निर्माण में राजस्थानी और मुघल वास्तुकला शैली का उपयोग किया गया है। यहाँ से हमें शहर का मनमोहक दृश्य भी दिखाई देता है। पिछोला सरोवर के साथ-साथ महल के परिसर में दूसरी इतिहासिक इमारते जैसे जग मंदिर, जगदीश मंदिर, मानसून पैलेस और नीमच माता मंदिर भी शामिल है। इस विशाल पैलेस का उपयोग 1983 में आयी जेम्स बांड की फिल्म ऑक्टोपुसी में भी किया गया है।