Latest News

Home / News / Details

जौहर

‘‘ जौहर ’’ राजपूतों की परम्परा जौहर - भारत देश की पतिव्रता भारत देश की राजपूतानियों और वीर राजपूतों के आत्मबलिदान की परम्परा रही है। भारत का मध्यकालीन इतिहास इस बात का गवाह है कि किस प्रकार मोहम्मद बिन कासिम से लेकर औरंगजेब तक और उसके बाद भी बर्बर मुस्लिम आक्रन्ताओं ने हमारे देश भारत पर आक्रमण किये और उसे लूटा। प्राचीन मंदिर व इमारतें नष्ट की और नारियों को अपनी हवस का शिकार बनाया। पूर्वकाल में राजनपूतों में जौहर आत्मसम्मान की रक्षा हेतु किये जाते थे। जब शत्रु किये को घेर लेता था व उसकी शक्ति अधिक होने से उसे परास्त करना कठिन व असम्भव सा लगता था किले में खाद्य सामग्री एवं पेयजल समाप्त हो जाता था और साथ ही यह भय भी लगता था कि कहीं शत्रु किले में प्रवेश पा गया तो वह पराजित पक्ष के नागरिकों की महिलाओं की बेईज्जती करेगा, बलात्कार करेगा, उन्हें सैनिकों में बांट देगा अथवा नीलाम कर देगा। अतः इस अपमान से बचने के लिए राजपूत महिलाएं सामूहिक रूप से अपने कुल देवी देवताओं की पूजा कर तुलसी के साथ गंगाजल का आचमन कर अग्नि में प्रवेश कर धधकती हुई ज्वालाओं में अपने प्राणों को उत्सर्ग कर लेती थी। सामुहिक रूप से किये गए ऐसे प्राणोत्सर्ग को ‘‘जौहर’’ की संज्ञा दी गई है। जौहर के पूर्व लकडियों की बडी चिता सजाई जाती थी और उसमें रूई, चंदन की लकडियां, घी, तेल, राल जैसे शीघ्र ज्वलनशील पदार्थ डाले जाते थे। महिलाएं अपने छोटे बच्चों को गोद में ले चिता पर बैठकर अपने व अपने बच्चों पर घी का लेप कर लेती थी। राजपुरोहित मंत्रोच्चार द्वारा वैदिक रीति से अग्नि देवता का आव्हान कर अग्नि प्रज्वलित कर मशालों को जलाकर चारों ओर से विशाल चिता को अग्नि देकर जौहर को अन्तिम रूप दिया जाता था। पुरूष चिन्ता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नहीं कर सकेगा। चित्तौड का पहला जौहर रानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 क्षत्राणियों ने सन् 1303 में किया था। लेखक. आशुतोष सिंह शेखावत