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चामुंडा माताजी

चामुंडा माताजी (मेहरानगढ़ - जोधपुर) चामुण्डा माता : प्रतिहार, परिहार, इन्दा वंश की कुलदेवी  परिहार, पडिहार, इन्दा ये श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है तथा वरदेवी के रूप में गाजन माता को भी पूजते है, तथा देवल शाखा प्रतिहार ( पडिहार,परिहार राजपूत ) ये सुंधा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है। पुराणो से ग्यात होता है कि भगवती दुर्गा का सातवा अवतार कालिका है , इसने दैत्य शुम्भ , निशुम्भ , और सेनापती चण्ड , मुण्ड का नाश किया था, तब से श्री कालिका जी चामुण्डा देवी जी के नाम से प्रसिद्द हुई। इसी लिये माँ श्री चामुण्डा देवी जी को आरण्यवासिनी , गाजन माता तथा अम्बरोहिया , भी कहा जाता है , पडिहार नाहडराव गाजन माता के परम भक्त थे। वही इनके वंशज पडिहार खाखू कुलदेवी के रूप में श्री चामुण्डा देवी जी की आराधना करते थे , प्रतिहार,पडिहार, परिहार राजपूत वंशजो का श्री चामुण्डा देवी जी के साथ सम्बंधो का सर्वप्रथम सटीक पडिहार खाखू से मिलता है। परिहार खाखू श्री चामुण्डा देवी जी की पूजा अर्चना करने चामुण्डा गॉव आते जाते थे , जो कि जोधपुर से ३० कि. मी. की दूरी पर स्थित है, घटियाला जहॉ पडिहार खाखू का निवास स्थान था, जो चामुण्डा गॉव से 4 कि. मी. की दूरी पर है। परिहार वंश की कुलदेवी : जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के पितामाह राव चुण्डा जी का सम्बंध भी माता चामुण्डा देवी जी से रहा था , सलोडी से महज 5 कि. मी. की दूरी पर चामुण्डा गॉव है, वहा पर राव चुण्डा जी देवी के दर्शनार्थ आते रहते थे, वह भी देवी के परम भक्त थे। ऐसी मान्यता है कि एक बार राव चुण्डा जी गहरी नींद में सो रहे थे तभी रात में देवी जी ने स्वप्न में कहा कि सुबह घोडो का काफिला वाडी से होकर निकलेगा , घोडो कि पीठ पर सोने की ईंटे लदी होगीं वह तेरे भाग्य में ही है , सुबह ऐसा ही हुआ खजाना एवं घोडे मिल जाने के कारण उनकी शक्ति में बढोत्तरी हुई। आगे चलकर इन्दा उगमसी की पौत्री का विवाह राव चुण्डा जी के साथ हो जाने पर उसे मण्डौर का किला दहेज के रूप में मिला था , इसके पश्चात राव चुण्डा जी ने अपनी ईष्टदेवी श्री चामुण्डा देवी जी का मंदिर भी बनवाया था। यहा यह तथ्य उल्लेखनीय है कि देवी कि प्रतिष्ठा तो पडिहारो के समय हो चुकी थी , अनंतर राव चुण्डा जी ने उस स्थान पर मंदिर निर्माण करवाया था मंदिर के पास वि. सं. 1451 का लेख भी मिलता है । अत: राव जोधा के समय पडिहारों की कुलदेवी श्री माँ चामुण्डा देवी जी की मूर्ति जो कि मंडौर के किले में भी स्थित थी। मेहरानगढ़ स्थित चामुण्डा माता मंदिर : उसे जोधपुर के किले में स्थापित करबाई थी , राव जोधा जी तो जोधपुर बसाकर और मेहरानगढ जैसा दुर्ग बनाकर अमर हो गये परंतु मारवाड की रक्षा करने वाली परिहारों की कुलदेवी श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार कर संपूर्ण सुरक्षा का भार माँ चामुण्डा देवी जी को सौप गये , राव जोधा ने वि. सं. 1517 ( ई. 1460 ) में मण्डौर से श्री चामुण्डा देवी जी की मूर्ति को मंगवा कर जोधपुर के किले में स्थापित किया। श्री चामुण्डा महारानी जी मूलत: प्रतिहारों की कुलदेवी थी राठौरों की कुलदेवी श्री नागणेच्या माता जी है , और राव जोधा जी ने श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार करके जोधपुर के किले में स्थापित किया था , ।।