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सरदार बज्जर सिंह राठौर

सरदार बज्जर सिंह राठौर सिख धर्म के उत्थान में राजपूतो का विशेष योगदान रहा है।बज्जर जी ने गोविंद सिंह जी को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा-दीक्षा दी थी । सरदार बज्जर सिंह जिनका देश के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान है बहुत कम ही लोग इनसे परिचित हैँ। बज्जर सिंह सिक्खो के दसवे गुरू श्री गोविंद सिंह जी के गुरू थे ,जिन्होने उनको अस्त्र शस्त्र चलाने मे निपुण बनाया था। उन्होंने गुरू गोविंद सिंह जी को ना केवल युद्ध की कला सिखाई बल्कि उनको बिना शस्त्र के द्वंद युद्ध, घुड़सवारी, तीरंदाजी मे भी निपुण किया। उन्हे राजपूत -मुगल युद्धो का भी अनुभव था और प्राचीन भारतीय युद्ध कला मे भी पारंगत थे। वे बहुत से खूंखार जानवरो के साथ अपने शिष्यों को लडवाकर उनकी परिक्षा लेते थे। गुरू गोविंद सिंह जी ने अपने ग्रन्थ ( बिचित्तर नाटक ) मे इसका वर्णन किया है। उनके द्वारा आम सिक्खो का सैन्यिकरण किया गया जो पहले ज्यादातर किसान और व्यापारी ही थे और इन्होंने भारतीय Martial Art गटखा का प्रशिक्षण भी दिया, ये केवल सिक्ख ही नही बल्की पूरे देश मे क्रांतिकारी परिवर्तन साबित हुये ।बज्जर सिंह जी की इस विशेषता की तारीफ ये कहकर की जाती है कि जो कला सिर्फ राजपूतों तक सीमित थी उन्होंने , मुग़लो से मुकाबले के लिये उसे खत्री सिक्ख गुरूओ को भी सिखाया, जिससे पंजाब में हिन्दुओ की बड़ी आबादी जिसमे ( आम किसान, मजदूर, व्यापारी आदि शामिल थे ) इनका सैन्यकरण करना संभव हो सका । बज्जर सिंह जी #सूर्यवंशी राठौर #राजपूत वंश के शासक वर्ग से संबंध रखते थे। वे #मारवाड के राठौर राजवंश के वंशंज थे --#वंशावली-- राव सीहा जी राव अस्थान राव दुहड राव रायपाल राव कान्हापाल राव जलांसी राव चंदाराव टीडा राव सल्खो राव वीरम देव राव चंदा राव रीढमल राव जोधा राव लाखा राव जोना राव रामसिंह प्रथम राव साल्हा राव नत्थूराव उडा ( उडाने राठौर इनके वंसज थे 1583 मे मारवाड के पतंन के बाद ये पंजाब आए ) राव मंदन राव सुखराज राव रामसिंह द्वितीय सरदार बज्जर सिंह ( अपने वंश मे सरदार की उपाधि लिखनेे वाले प्रथम राजपूत थे ) इनकी पुत्री भीका देवी का विवाह आलम सिंह चौहान (नचणा) से हुआ जिन्होंने गुरू गोविंद सिंह जी के पुत्रो को शस्त्र विधा सिखाई--।1710 ईस्वी के चॉपरचिरी के युद्ध में इन्होंने भी बुजुर्ग अवस्था में बन्दा सिंह बहादुर के साथ मिलकर वजीर खान के विरुद्ध युद्ध किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी। जय भवानी । जय राजपूताना ।।