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' सिंह ' क्यों लगाते है।

अपने नाम के पीछे सिंह क्यो लगाते है राजपूत 'सिंह’ शब्द क्षत्रियों के नाम के अंत में लगाने की प्रथा है । परन्तु ‘सिंह’ ही शब्द क्यों लगया ? क्या दूसरा शब्द नहीं था ? इस विषय में कोई इतिहास मिलता है या नहीं यह जानना आवश्यक है । ‘सिंह’ संस्कृत शब्द है इसका अर्थ ‘ बनराज ‘ पशुओं का राजा होता है । ‘राजा’ यानी राज्य करने वाला । जिसकी आज्ञा का सभी लोग पालन करते हों । और वह सबसे श्रेष्ठ हो । जिस प्रकार सिंह को बलवान से बलवान पशुओं में धाक बैठाने के कारण सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ,उसी प्रकार क्षत्रियों को भी चार वर्णों में कर्म के हिस्से में राज्यों का संरक्षण और प्रजा का पालन करने का कर्तव्य सौपा था । इसीलिए श्रेष्ठता सूचक ‘सिंह ‘ अपने नामों में लगाते है। महाभारत अथवा पुराणकालीन युग में ऐसा कोई नाम नहीं मिलता जिसके अंत में ‘सिंह’ शब्द लगाया गया हो । क्षत्रियों के उस समय के नामों को देखो – महाराजा रघु ,जिनके रघुकुल में से श्री रामचन्द्रजी ने जन्म लिया श्री कृष्ण ,युधिस्ठिर ,अर्जुन,भीमसेन, ययाति, धृतराष्ट्र ,दुर्योधन, हरिश्चंद्र ,विक्रम ,भोज इत्यादि हुए। इतिहास प्रथम सिहांत , सबसे पहले सिंह शब्द नाम ,’शाक्यसिंह ‘ बतलाता है । यह महाराजा शाक्य के नाम से ही गौतम बुद्ध का नाम पड़ा था यह बाद में भगवान बुद्ध कहलाये । इसी वजह से शाक्यों में श्रेष्ठ गौतमबुद्ध थे , इसके लिए अमर कोष के श्लोक –2 इससे सिद्ध होता है कि अपनी श्रेष्ठता और शक्ति के कारण ‘सिंह’ शब्द अंत में लगाया गया है ,ऐसा मानने में आता है । दूसरी सदी कि शुरुआत में गुजरात, काठियावाड़, राजपूताना, मालवा, दक्षिण, आदि देशों पर राज्य करने वाले मध्य एशिया (ईरान) की शाक्य जाति का क्षत्रवंशी राजा रूद्रदामना दूसरा कुमार महाराजा रुद्रसिंह के नाम के अंत में ‘सिंह’ शब्द पाया गया है । (वि० सं० २३८ ई० सं० १८१ सं० ४४५ में होने वाले ‘रूद्र सिंह’ और ‘सत्य सिंह’ के नाम प्राचीन लेख और ताम्रपत्र तथा सिक्का, मिल चुके हैं । इसके पीछे ‘सिंह’ नामांत का क्रम राजवंशों में प्रचलित हो गया । सोलंकी क्षत्रियों में ‘जयसिंह’ नाम का एक राजा वि०सं० ५३४ में हो गया है । महामहोपाध्याय रायबहादुर गौरीशंकर ओझा कृत ‘सोलंकियों के प्राचीन इतिहास’ में से इस सम्बन्धी प्रमाण मिलते हैं । विक्रम की १०वीं सदी में मालवा के ‘परमार’ वरसिंह पहला और १२वीं सदी में गहलोत वंशीय महाराणा उदयपुर मेवाड़ के पूर्वज ‘वैरा सिंह’, ‘विजय सिंह ‘ । वि० सं० १२७३ में ‘अरि सिंह’ आदि नाम मिलते हैं । कच्छवाहों में नरवर ‘ग्वालियर वाला राजा ‘गगनसिंह ‘, ‘शरद सिंह’ और ‘बीर सिंह’ नामों में शब्दांत ‘सिंह’ शब्द है । कच्छवाहों के वि० सं० ११७७ के कार्तिक बदी ३० रविवार का शिलालेख देखा हुआ है । ( जनरल ऑफ़ अमेरिकन ओरिएण्टल सोसाइटी भाग ६ पृ १४२ ) मुग़लकाल में ‘सिंह ‘शब्द का प्रचार बढ़ गया था । राजपूतों के अलावा दूसरी जाति भी इस शब्द का प्रयोग करने लग गई है । ‘सिंह ‘ शब्द उस समय से उपाधि नहीं बल्कि बहादुरी के अर्थ में प्रचलित हो गया है । ‘सिंह ‘ जैसे बहादुर कि तरह जब हिन्दू ‘सिंह ‘ शब्द नाम के पीछे लगाने लगे !! राजपूतो के नाम के आगे सिंह , उनकी बहादुरी के कारण लगता था, न कि किसी की गुलामी के कारण, या ना किसी विदेशी की उपाधि के कारण !!