भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स राजपूताना राइफल्स भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है। इसकी स्थापना 1775 में की गई थी, जब तात्कालिक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजपूत लड़ाकों की क्षमता को देखते हुए उन्हें अपने मिशन में भर्ती कर लिया। यह भारतीय सेना का सबसे पुराना राइफल रेजिमेण्ट है। इसके नाम से ही दिल मे डर बैठ जाता है| भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स के नाम से ही पाकिस्तान थर्रा उठता है। इसकी तीसरी रेजीमेंट इन दिनों मेरठ में है। राजपूताना राइफल्स के ज्यादातर सदस्य अपनी विशेष शैली की मूछों के पूरे विश्व में फेमस हैं। मध्यकालीन राजपूतों का हथियार कटार और बिगुल राजपूत रेजिमेंट का प्रतीक चिन्ह है। आज़ादी के बाद जब-जब दुश्मनों नें हमारे इस पवित्र देश की तरफ अपनी नज़रें तिरछी की हैं तब-तब भारत माता की सेवा में इस राजपूत रेजीमेंट के बहादुर जवानों ने अपना सबकुछ निछावर करते हुए उच्च कोटि के युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया हैं। आजादी के पहले दोनों विश्वयुद्धों में इस राजपूताना राइफल्स ने अंग्रेजों की तरफ से युद्ध करते हुए उत्कृष्ट सेवा, उच्च श्रेणी की वीरता का प्रदर्शन किया था। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान राजपूताना राइफल्स के लगभग 30,000 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी। राजपूताना राइफल्स का आदर्श और सिद्धांत वाक्य “वीर भोग्या वसुंधरा”है। इसका अर्थ है कि ‘केवल वीर और शक्तिशाली लोग ही इस धरती का उपभोग कर सकते हैं। राजपूताना राइफल्स का युद्धघोष है...“वीर भोग्या वसुंधरा, राजा रामचंद्र की जय” है। राजपूताना राइफल्स को मुख्यत: पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए जाना जाता है। सन 47 की लड़ाई हो या फिर 65 और 71 की जंग, हर बार राजपूताना राइफल्स ने शानदार प्रदर्शन किया। कारगिल युद्ध तक भी यह सिलसिला चलता रहा। राजपूत रेजिमेंट को द्वितीय विश्व युद्ध में उच्च कोटि की बहादुरी और अत्यधिक श्रेष्ठ युद्ध कौशल के लिए विक्टोरिया क्रास (ब्रिटेन का सबसे बड़ा सैनिक सम्मान) से सम्मानित किया गया था। राजपूताना राइफल्स वहां लड़ने वाली 7 आर्मी यूनिट्स में से पहली यूनिट थी, जिसे 1999 में हुए कारगिल युद्ध में बहादुरी के लिए आधिकारिक तौर पर सम्मान पत्र से नवाज़ा गया था। दिल्ली में स्थित राजपूताना म्यूजियम राजपूताना राइफल्स के समृद्ध इतिहास की बेहतरीन झलक है। यह पूरे भारत के बेहतरीन सेना म्यूजियमों में से एक है।